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Home / Art / / भारतीय कला में शिव (set of 2 vols.)
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  1. Home > Art > Iconography > भारतीय कला में शिव (set of 2 vols.)
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भारतीय कला में शिव (set of 2 vols.)

भारतीय कला में शिव (set of 2 vols.)

By :- Devendra Gupta

Price:
 9995     $ 250
 7995
Sale Price:
     $ 200
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: 1136

Format: Hard Bound

ISBN-13: 978-81-7305-724-3

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 22 cm x 29 cm

Product Year: 2025

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  • Book Description
  • Table Of Content
  • Authors Details


त्रिदेवों की भारतीय परम्परा में शिव को प्रधानतः संहार का देवता माना गया है। लेकिन शनैः-शनै: उनके स्वरूप में परिवर्तन होता गया और वे संहारकर्त्ता के साथ-साथ सृष्टि के सृजनकर्ता एवं पालनकर्ता भी बन गये। जिसके परिणाम स्वरुप वे समाज में सर्वोच्च देव के रूप में प्रतिष्ठापित हो गये और उनकी गणना देवादिदेव महादेव के रूप में की जाने लगी। वास्तव में हिन्दू देव परिवार में शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनकी पूजा प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक भारतवर्ष के प्रत्येक नगर, ग्राम, पर्वत तथा अरण्य आदि स्थानों में प्रत्येक वर्ग एवं आयु के मनुष्यों द्वारा बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती रही है।
प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय कला में शिव, पुराण, आगम एवं शिल्प शास्त्र जैसे मूल ग्रन्थों को आधार बनाकर लिखा गया है। साथ ही संस्कृत साहित्य में उल्लिखित कथानकों का भी अत्यन्त विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में शुंग काल से लेकर विजयनगर राजाओं तक के शासन काल में निर्मित शिव मूर्तियों का कालक्रमानुसार विस्तृत अध्ययन किया गया है ताकि विषय को समग्रता प्रदान की जा सके। प्रस्तुत ग्रन्थ दो खण्डों में विभक्त है जिसमें कुल नौ अध्याय हैं। ये हैं — शिव की ऐतिहासिकता, लिंग मूर्तियाँ, अनुग्रह मूर्तियाँ, संहार मूर्तियाँ, सौम्य मूर्तियाँ, संघाट मूर्तियाँ, विविध मूर्तियाँ, नटराज मूर्तियाँ एवं दक्षिणा मूर्तियाँ। इस प्रकार इन नौ अध्यायों के माध्यम से भारतीय कला में अभिव्यक्त शिव के समग्र रूप को प्रस्तुत किया गया है।
यह प्रयास किया गया है कि प्रस्तुत ग्रन्थ को सरल एवं सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया जाये ताकि यह ग्रन्थ शोधर्थियों एवं विद्वान पाठकों के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी रुचिकर, उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध हो सके।



 




खण्ड-1

                                प्राक्कथन    

                                चित्र-सूची (खण्ड-1)

                1-            शिव की ऐतिहासिकता  1-57

                2-            लिग मूर्तियाँ   58-129

                3-            अनुग्रह मूर्तियाँ 130-238

                4-            संहार मूर्तियाँ  239-458

खण्ड-2

                                चित्र-सूची (खण्ड-2)          

                5-            सौम्य मूर्तियाँ  459-679

                6-            संघाट मूर्तियाँ  680-765

                7-            विविध मूर्तियाँ  766-905

                8-            नटराज मूर्तियाँ 906-1002

                9-            दक्षिणा मूर्तियाँ 1003-1045

                                सन्दर्भ ग्रंथ-सूची 1047-1058

                                शब्दानुक्रमणिका 1059-1087


देवेन्द्र कुमार गुप्ता का जन्म 5 जुलाई 1971 को उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार जनपद में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हरिद्वार में ही सम्पन्न हुई। इन्होने गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग से 1993 में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया। तत्पश्चात 1996 में इसी विभाग से डॉक्टर ऑफ़ फिलॉसफी (पी-एच०डी०) की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान में डॉ० गुप्ता, गुरुकुल काँगड़ी  समविश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष एवं पुरातत्त्व संग्रहालय के निदेशक पद पर कार्यरत हैं।
डॉ० गुप्ता के वर्तमान समय तक 50 से अधिक शोध पत्र विभिन्न शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त डॉ गुप्ता की चार पुस्तकें भी अभी तक प्रकाशित हो चुकी हैं। इसमें पहली पुस्तक ‘प्राचीन भारत में व्यापार’, कॉलेज बुक डिपो, जयपुर से 2001 में, दूसरी पुस्तक ‘प्राचीन भारतीय समाज एवं अर्थव्यवस्था’, न्यू भारतीय बुक कारपोरेशन, नई दिल्ली से 2004 में, तीसरी पुस्तक ‘सूत्र साहित्य में वर्णित भारतीय समाज एवं संस्कृति’, प्रतिभा प्रकाशन, नई दिल्ली से 2009 में तथा चौथी पुस्तक ‘वैदिक कृषि विज्ञान’, प्रतिभा प्रकाशन, नई दिल्ली से 2012 में प्रकाशित हुई।
डॉ० गुप्ता का इस पुस्तक को लिखने का मूल उद्देश्य भारतीय कला में अभिरुचि रखने वाले विद्यार्थियों के अतिरिक्त जिज्ञासुओं एवं सामान्य पाठकों के सामने भारतीय कला में अभिव्यक्त शिव के विभिन्न स्वरूपों को प्रस्तुत करना है ताकि वे शिव की अलौकिकता एवं दिव्यता का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें।

 

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