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Home / History / / लाल किले से आई आवाज: इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन के संस्मरण 'फ्रॉम माई बोन्स' का हिन्दी अनुवाद
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लाल किले से आई आवाज: इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन के संस्मरण 'फ्रॉम माई बोन्स' का हिन्दी अनुवाद

लाल किले से आई आवाज: इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन के संस्मरण 'फ्रॉम माई बोन्स' का हिन्दी अनुवाद

By :- Col. G.S. Dhillon

Price:
 995     $ 25
 895
Sale Price:
     $ 22
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: 584

Format: Hard Bound

ISBN-13: 978-81-7305-698-7

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 16cm x 24cm

Product Year: 2024

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  • Book Description
  • Table Of Content
  • Authors Details


एक ऐतिहासविद का दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है उस व्यक्ति से, जो इस घटना से, आत्मियता से जुड़ा हो। लाल किला देहली का ऐतिहासिक मुकदमा जो 1945 में हुआ था, उसके उत्तरजीवी आज केवल कर्नल • ढिल्लन ही हैं। इस पुस्तक में अंकित उनके अनुभवों ने भारतवर्ष की स्वतंत्रता में असाधारण रूप से योगदान दिया है।

आज़ाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.) का प्रख्यात मुकदमा जो लाल किला देहली में 5 नवम्बर 1945 को शुरू हुआ था, उसके तीन अभियुक्तों में से एक अभियुक्त कर्नल ढिल्लन भी थे जिन पर तथा कथित राजद्रोह यानि सम्राट के विरूद्ध युद्ध करने का आरोप था। इस मुकदमें ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णायक मोड़ भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम को प्रदान किया। कर्नल ढिल्लन अपने दो साथियों के साथ भारतवर्ष की स्वतंत्रता के प्रतीक बन गये।

इस पुस्तक में कर्नल ढिल्लन ने अपने आज़ाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.) के अनुभव एवं अपने मुकदमें की सुख-दुख भरी यादों का वर्णन किया है। लेखक के अपने विवरण में आज़ाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.) का इतिहास नहीं वरन् जो घटनाऐं उनके साथ अपनी डियूटी के समय उनके पद के अनुरूप इस आन्दोलन में घटित हुई उनका वर्णन है। यह अधिकतर उनके कार्य का ऐतिहासिक विवरण है।

डॉ. जायस सी. लिब्रा के शब्दों में कर्नल ढिल्लन के संस्मरण, पाठकों को दर्शाते हैं, भारत की स्वतंत्रता के लिये उनके दृढ़ एवं स्थिर सिद्धान्तों, राष्ट्रभक्ती पूर्ण समर्पण, मुसिबतों के समय हिम्मत, विनोदी स्वभाव एवं ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में उनके मानवीय दृष्टिकोण का भारतीय स्वतंत्रता में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान।




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कर्नल जी. एस. ढिल्लन का जन्म अलगों ग्राम में 18 मार्च 1914 को हुआ था। उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून से नियमित कमीशन अधिकारी की पदवी ब्रिटिश भारतीय थल सेना में अप्रैल 1940 को प्राप्त की थी। 15 फरवरी 1942 को ब्रिटिश सेना द्वारा सिंगापुर में जपानियों के समक्ष आत्मसमर्पण के उपरान्त उन्होंने जनरल मोहन सिंह द्वारा स्थापित आई.एन.ए. में प्रवेश लिया था।

1944 के अंत में नेताजी ने उन्हें चौथी गुरिला रेजिमेन्ट की बागडोर सौंपी थी, जो नेहरू ब्रिगेड के नाम से भी जानी जाती थी। इनकी रेजिमेन्ट ने युद्ध भूमि में अपनी उत्कृष्ट भूमिका द्वारा परम विशिष्टता अर्जित की थी। युद्ध काल के बाद लाल किले में अंग्रेजों ने इन पर आज़ाद हिन्द फौज का प्रथम मुकदमा 4 नवम्बर से 31 दिसम्बर 1945 तक, कर्नल पी.के. सहगल एवं मेजर जनरल शाहजवाज़ खान के साथ चलाया था। इस ऐतिहासिक मुकदमें ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया निर्णायक कीर्तिमान प्रदान किया था।

वर्त्तमान में कर्नल ढिल्लन मध्यप्रदेश में शिवपुरी जिले के ग्राम हातोद के निवासी हैं।

-स्मृतिशेष-

(बानवे वर्षीय कर्नल गुरूबख्श सिंह ढिल्लन 06 फरवरी 2006 को इस नश्वर संसार से महाप्रयाण करके ब्रह्मलीन हो गये। )

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