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Home / History / / भारतीय इतिहास का आदि चरण – पाषाण-युग
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  1. Home > History > Ancient > भारतीय इतिहास का आदि चरण – पाषाण-युग
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भारतीय इतिहास का आदि चरण – पाषाण-युग

भारतीय इतिहास का आदि चरण – पाषाण-युग

By :- Vidula Jayaswal

Price:
 1995     $ 50
 1250
Sale Price:
     $ 31
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: xvi + 290

Format: Hard Bound

ISBN-13: 978-81-7305-694-9

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 17cm x 25cm

Product Year: 2024

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  • Book Description
  • Table Of Content
  • Authors Details


आधुनिक तकनीकियों के ताने-बाने में बुनी संस्कृति और सभ्यता, लगभग अट्ठारह लाख वर्षों के क्रमिक विकास का परिणाम है। संस्कृतियों का निर्माता तथा उसका परिवेश भी परिवर्तन की प्रक्रिया से लम्बे अवधि तक अछूता नही था। परिवर्तन की इस प्रक्रिया का एक अहम् बिन्दु प्रकृति में मानव का पदार्पण था क्योंकि यहाँ से ही मानव के इतिहास का प्रारम्भ होता है। इतिहास का उषा-काल पाषाण युग है जिससे तकनीकियों, सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं की नींव पड़ी। सर्वविदित है कि आधार या प्रारम्भ किसी भी प्रक्रिया के समझ के लिए आवश्यक है, फिर वह मानव का इतिहास ही क्यों न हो।

इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप के पाषाण युग का निरूपण है। उसके लिए विश्व का संदर्भ आवश्यक प्रतीत हुआ। क्योंकि जिस अत्यन्त प्राचीन परिपेक्ष का विश्लेषण इसमें किया जा रहा है, वह कई क्षेत्रों में आंशिक रूप से ही सुरक्षित रह पाया है। अतएव इस पुस्तक में विश्वव्यापी तथ्यों को संजोकर पाषाण युग के मानव तथा उसके द्वारा निर्मित कृतियों को रेखांकित किया गया है। यह पृष्ठभूमि भारतीय उपमहाद्वीप के पुरा-प्रस्तर, मध्य-प्रस्तर, तथा नूतन-प्रस्तर की समीक्षा का आधार है। पाषाणकालीन तकनीकियों, उपकरण प्रकार, महत्वपूर्ण स्थल, परिभाषाएँ, इन सबका परिचय मूलरूप से विद्यार्थियों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है।

पाषाण युग का विश्व परिपेक्ष, भारत के अवशेषों का वर्णन, तकनीकियों व उपकरणों का सचित्र परिचय निश्चित रूप से पाठकों की उन कठिनाई को सुलभ बनायेगा जो इस विषय पर विदेशी भाषा में लिखे शोध प्रबन्धों से अग्राह्य हैं। यह पुस्तक सामान्य पाठक, जो मानव इतिहास के आदि-चरण के जिज्ञासु हैं, अध्यापक, जिनके लिए समयाभाव के कारण मूल बहुभाषीय प्रकाशन का पठन कठिन है तथा विद्यार्थी सभी के लिये उपयोगी होगी।




प्राक्कथन

चित्र-सूची    

तालिका-सूची

खण्ड 1: पृष्ठभूमि

अध्याय 1:           विषय स्थापना: प्रतिनूतन काल का परिवेश   

अध्याय 2:           आदि मानव

अध्याय 3:           पाषाण कालीन तकनीकियाँ: उपकरण व मृदापात्र

अध्याय 4:    विश्व परिपेक्ष में पाषाण युग: मानव व संस्कृतियाँ    

खण्ड 2: भारत का पुरा-प्रस्तर काल

अध्याय 5:           खोज एवं शब्दावलियाँ 

अध्याय 6:           पूर्व पुरा-प्रस्तर कालीन संस्कृतियाँ    

अध्याय 7:           मध्य पुरा-प्रस्तर कालीन संस्कृतियाँ

अध्याय 8:           उच्च पुरा-प्रस्तर कालीन संस्कृतियाँ   

खण्ड 3: भारत का मध्य-प्रस्तर काल

अध्याय 9:           अवधारणा एवं परिभाषाएँ

अध्याय 10:        ऐतिहासिक क्रम एवं कालावधि 

अध्याय 11:        क्षेत्रीय संस्कृतियाँ व भौगोलिक परिवेश

अध्याय 12:        पर्यावलोकन  

खण्ड 4: भारत का नव-प्रस्तर काल

अध्याय 13:        अवधारणा तथा क्षेत्रीय संस्कृतियाँ

अध्याय 14:        बुर्जहोम संस्कृति: काश्मीर घाटी

अध्याय 15:        कोलडिहवा संस्कृति: विन्ध्य-कैमूर-गांगेय क्षेत्र  

अध्याय 16:        भारत के पूर्वी क्षेत्र का नव-प्रस्तर काल 

अध्याय 17:        ब्रह्मगिरि संस्कृति: दक्क्खन  

अध्याय 18:        उपसंहार

पारिभाषिक शब्द

प्रासंगिक सन्दर्भ

अनुक्रमणिका 

 


लेखिका प्रो. विदुला जायसवाल विश्वविख्यात प्रागैतिहासकार के साथ ही अति प्रतिष्ठित अध्यापक भी हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रागैतिहास की शिक्षिका के रूप में लगभग चार दशकों तक उनकी कार्यप्रणाली तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्व अध्ययन विभाग में समय समय पर किए गये अध्यापन से प्रागैतिहासकार के रूप में उनकी ख्याति देश में स्थापित हो गई। उपर्युक्त संस्थानों के अतिरिक्त, प्रागैतिहास का गहन ज्ञान और समझ उन्हें अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय के नृतित्व विभाग में शोध व वरिष्ठ प्रागैतिहासकार जी. डेसमण्ड क्लार्क, रूथ ट्रिंगम तथा ग्लिन इज़ैक के साहचर्य से हुआ। अमरीका, इंगलैंड व सोवियत रूस के कई संग्रहालयों एवं शोध संस्थाओं के पाषाणकालीन संग्रहों के अध्ययन ने इनको विश्व के प्रागैतिहास में सिद्धहस्तता प्रदान की।

भारत के आदि मानव के इतिहास के साक्ष्यों की खोज तथा निरूपण प्रो. जायसवाल की विशेषता रही है। पूर्व पुरा-प्रस्तर के आवासीय स्थल पैसरा से  झोपड़ियों के प्रमाण एशिया महाद्वीप के प्राचीनतम आश्रय हैं, जो इन्होंने प्रो. पी. सी. पंत के साथ प्रकाशित किया है। लघु-आश्मकों के दीर्घ इतिहास के चरण की पहचान व व्याख्या तथा ऐसे अनेक भारतीय पाषाण युग के पक्षों को इन्होंने संगोश्ठियों तथा प्रकाशनों द्वारा स्थापित किया है। पाषाण कालीन तकनीकियों पर इनकी विशेष पकड़ है। भारत के महत्वपूर्ण संग्रहों में तकनीकियों की स्थिति पर आधारित प्रो. जायसवाल का प्रकाशित प्रथम ग्रंथ च्ंसंमवीपेजवतल व िप्दकपंए उनके डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी के शोध पर आधारित था, जिसकी उपादेयता आज भी है।

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