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Home / Religion / / वासुदेव कृष्ण और मथुरा (Spl. Janmashtami Offer)
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  1. Home > Religion > Hinduism > वासुदेव कृष्ण और मथुरा (Spl. Janmashtami Offer)
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वासुदेव कृष्ण और मथुरा (Spl. Janmashtami Offer)

वासुदेव कृष्ण और मथुरा (Spl. Janmashtami Offer)

By :- Meenakshi Jain

Price:
 595     $ 15
 445
Sale Price:
     $ 11
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: x + 244

Format: Hard Bound

ISBN-13: 978-81-7305-683-3

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 15cm x 23cm

Product Year: 2023

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  • Authors Details


इस पुस्तक में भारत में मूर्ति पूजा की प्राचीनता की चर्चा की गई है। इसका मुख्य विषय भागवत धर्म है जो वृष्णि वंश के वासुदेव कृष्ण के समय के आसपास विकसित हुआ। वासुदेव का सबसे पहला साहित्यिक वर्णन पाणिनि के व्याकरण (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) में मिलता है, और सबसे प्राचीन पुराले संदर्भ हेलियोडोरस स्तंभ शिलालेख (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) मे मिलता है। मथुरा में कटरा केशवदेव के स्थान पर आरंभिक काल के कई उल्लेखनीय पुरातात्विक प्रमाण खोजे गए हैं।

मध्ययुगीन काल में, कटरा केशवदेव को बार-बार तबाही का शिकार होना पड़ा, जिसकी शुरुआत महमूद गजनवी ने सन् 1017 में कीम थी। इस हमले के एक सदी के भीतर ही कटरा केशवदेव में विष्णु को समर्पित एक नया मंदिर बना लिया गया था किन्तु इस नव निर्माण के बाद भी यहाँ विनाश की कहानी बार बार दोहराई जाती रही।

17 वीं शताब्दी की शुरुआत में बीर सिंह देव बुंदेला द्वारा केशवदेव मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। सन् 1670 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे तोड़ने का आदेश दिया था और उसी स्थान पर एक ईदगाह का निर्माण करवा दिया गया।

कटरा केशवदेव के बाद के घटनाक्रमों को औपनिवेशिक भारत के न्यायिक रिकॉर्ड में विधिवत दर्ज किया गया। सन् 1815 में कटरा केशवदेव को नीलामी द्वारा बनारस के राजा पाटनीमल को बेच दिया गया था, जैसा कि राजस्व और नगरपालिका के दस्तावेजों से पता चलता है।

8 फरवरी 1944 को राजा पाटनीमल के वारिसों ने कटरा केशवदेव को सेठ जुगल किशोर बिड़ला को बेच दिया, जिन्होंने उस स्थान पर श्री कृष्ण के मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाया। एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में 12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशवदेव की लगभग दो बीघा जमीन मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट को सौंप दी गई।

इस पुस्तक में कटरा केशवदेव में सन् 1815 के बाद घटी घटनाओं से संबंधित कई दस्तावेज़ शायद पहली बार सामान्य पाठक के सामने प्रस्तुत किए जा रहे हैं। ये दस्तावेज़ इस स्थान के प्रति हिन्दुओं की कट्टर आस्था और प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करते हैं।




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मीनाक्षी जैन प्राचीन और मध्यकालीन भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक विकास में रुचि रखने वाली इतिहासकार हैं। उनके हाल के प्रकाशनों में शामिल हैं द हिन्दूस् ऑफ हिंदुस्तानः अ सिविलाइज़ेशनल जर्नी (2023), फ्रलाइट ऑफ डेयटीज़ एंड रीबर्थ ऑफ टेम्प्लस (2019), द बैटल फॉर रामाः केस ऑफ अ टेम्पल एैट अयोध्या (2017), सतीः इवांजेलिक्स, बैप्टिस्ट मिशनरीज, एंड द चेंजिंग कोलोनिअल डिस्कोर्स (2016), रामा एंड अयोध्या (2013)।

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