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  1. Home > History > Ancient > आर्यों का आदिदेश भारत
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आर्यों का आदिदेश भारत

आर्यों का आदिदेश भारत

By :- B.B. Lal

Price:
 595     $ 15
 495
Sale Price:
     $ 12
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: xvi + 80

ISBN-13: 978-81-7305-670-3

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 15cm x 22cm

Product Year: 2022

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प्रोफेसर बी बी लाल ने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति से संबंधित  विभिन्न  विषयों पर विस्तार से लिखा है। इनमें भारत के आर्य आक्रमण जैसे सदाबहार विषय शामिल हैं। वास्तव में, उनकी पुस्तक ‘द ऋग्वैदिक पीपुल’ इस बारे में बहुत विस्तार से बताती है कि ऋग्वैदिक लोग आक्रमणकारी थे, अप्रवासी थे या स्वदेशी थे? हालांकि, इस का लेखन अंग्रेजी में था। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से प्रो लाल ने हिन्दी भाषी लोगों से संपर्क किया है।
इस पुस्तक में आर्य समस्या के लगभग सभी संबंधित पहलुओं को शामिल किया गया है जैसे कि भारत पर आर्यों का आक्रमण, और उसका विकल्प, भारत में आर्यों का प्रवास। यह पुस्तक बताती है कि ये सभी सिद्धांत  मौलिक रूप से गलत हैं। इसके अनुसार आर्य  भारत के मूल निवासी थे। वास्तव में, ऋग्वैदिक लोग 2000 ईसा पूर्व के आसपास पष्चिम एशिया में चले गए जहां तुर्की में बोगाज़कोई में मिट्टी की तख्तियां मिली हैं। इन तख्तियों में हित्तियों और मित्तनी के बीच एक संधि दर्ज है जिसमें इंद्र, वरुण, आदि जैसे देवताओं को गवाह के रूप में वर्णित किया गया है।
एक उत्कृश्ट मानचित्र के साथ, प्रो लाल ने प्रदर्शित किया कि ऋग्वेद और हड़प्पा सभ्यता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।




चित्र-सूची

1. विषय-प्रवेश

2. ऋग्वेद का रचना-काल तथा उसका सरस्वती-सिंधु (हड़प्पा) सभ्यता से तालमेल

3. आर्यों का भारत पर आक्रमण (Aryan Invasion of India) : इस दावे का निरा खोखलापन

4. यदि आर्य आक्रमणकारी नहीं थे तो घुसपैठिए ही सही

5. "हे बनस्पतिवर्ग, कुछ तो मदद करो!"

6. क्या कुछ ऋग्वैदिक लोगों ने स्वयं भारत से जाकर पश्चिम एशिया में प्रवास किया था?

7. सरस्वती नदी तो सूख  गयी, पर सरस्वती-संस्कृति आज भी प्रवाहित है।

 

संदर्भ सूची

अनुक्रमणिका


ब्रज बासी लाल, एक विश्व प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता, जिनका जन्म 02 मई 1921 में हुआ था, पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक 1968 से 1972 तक रहे।  उन्होंने जिन जगहों का उत्खनन व अन्वेशण किया, उनके नाम हैं शिशुपालगढ़ (1948), महाभारत से जुड़े स्थल हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ इत्यादि (1952-53), मिस्र में नूबिया (1960), कालीबंगन (1961-69), और रामायण से जुड़े स्थल अयोध्या इत्यादि (1975-82)।
उनकी पुस्तकों में द अर्लियेस्ट सिविलाइजेशन ऑफ  साउथ एशिया (1997); इंडिया 1947-97: न्यू लाइट आन द इंडस सिविलाइजेषन (1998); द सरस्वती फ्रलोज ऑन : द काॅन्टिनुइटी ऑफ इंडियन कल्चर (2002); हाउ डीप आर द रूट्स ऑफ इंडियन सिविलाइजेशन? आर्केलाॅजी आंसर्स (2009); ऋग्वैदिक पीपुलः ‘इनवेडर्स’?/ ‘इमिग्रेंट्स’?/और इंडिजेनस(2015); महाभारत की ऐतिहासिकताः साहित्य, कला और पुरातत्व के साक्ष्य (2019); द मार्च टुवर्ड्स अर्बनाइज़ेशन इन द गंगा बेसिन (2019); और अन्य हैं।

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