Login

Sign UP



Register

                        Sign In

Forgot Password?

Please enter your email id below. We will send you a link to reset your password.

       Sign In




 
  • Sign In
  • Sign Up
  • My Cart
    0
  • Checkout
  • (011) 23255799,(011) 23287589
  • aryanbooks@gmail.com
Home / History / / कोसंबीः कल्पना से यथार्थ तक
  • Home
  • About Us
  • E-Catalogue
  • New Releases
  • Regenerations
  • Invitation To Institutes
  • Manuscript Submission
  • Contact Us
  1. Home > History > Ancient > कोसंबीः कल्पना से यथार्थ तक
ALL CATEGORIES
  • Anthropology
  • Archaeology
  • Architecture
  • Art
    • Painting
    • Iconography
  • Crafts & Textiles
  • Cultural Studies
  • Delhi: The Heritage City...
  • Folklore & Tribal Studies...
  • Heritage Management
  • History
    • Ancient
    • Medieval
    • Modern
  • Literature
  • Performing Art
    • Dance
    • Music
    • Theatre/Drama
  • Philosophy
  • Print/Portfolio
  • Reference/Multi-volume Sets...
  • Religion
    • Buddhism
    • Christianity
    • Hinduism
    • Islam
    • Jainism
  • Rock Art
  • Society & Culture
  • Travel

Follow us on Twitter

कोसंबीः कल्पना से यथार्थ तक

कोसंबीः कल्पना से यथार्थ तक

By :- Bhagwan Singh

 795   $ 20
QTY:
  • Available: In Stock

Type: Hindi

Pages: x+406

ISBN-13: 978-81-7305-434-1

Place: New Delhi

Edition: 1st

Publisher: ARYAN BOOKS INTERNATIONAL

Size: 15cm x 22cm

Product Year: 2012

Add to Cart Buy Now
  • Book Description
  • Table Of Content
  • Authors Details


सामंतवाद, जातिवाद, आर्यवाद, आदिम साम्यवाद, ब्राह्मणवाद, कोशल और मगध्, गंगाघाटी में कृष्षि का विकास, इतिहास और पुराण, रीति-विश्वास, यहाँ तक कि माडलों वेफ हवाले से अतीत की व्याख्या आदि वेफ विष्षय में कोसंबी ने जो बातें अध्कि अध्किार वेफ साथ, अपने तर्वफ देते हुए और अपने दृष्ष्टिकोण की चूक वेफ कारण, ढेर सारी गलतियाँ करते हुए कही हैं, उन्हें ही बाद वेफ माक्र्सवादी वुफछ अध्कि भौंड़े रूप में, गलतियों और वेफवल गलतियों का विस्तार करते हुए, दुहराते रहे हैं। यदि एक वाक्य में उनका मूल्यांकन करना हो तो कहना होगा वह प्राचीन भारतीय इतिहास वेफ पहले और अंतिम माक्र्सवादी इतिहासकार हैं और माक्र्सवादी ¯चतन की सीमाओं, शक्तियों और विचलनों वेफ प्रतीक हैं।
कोसंबी सि(ांत-निरूपण में बहुत सुथरे लगते हैं। ये सि(ांत उन्हें बने बनाए मिले हैं। जैसे ‘इतिहास लिखने से अध्कि महत्वपूर्ण है इतिहास को बदलना,’ माक्र्स वेफ प्रसि( सूत्रा का रूपांतर है। यदि कोसंबी को सचमुच इसमें विश्वास था तो उन्हें इतिहास लिखने की जगह सक्रिय राजनीति में उतरना चाहिए था। इतिहास को बदला नहीं जा सकता, उसे समझा जा सकता है और उस समझ से भविष्ष्य को सँवारा जा सकता है। इस समझ वेफ अभाव में या मध्यवर्गीय सुविधओं वेफ बीच वह माक्र्सवादी लप्फपफाजी से काम लेते रहे और वह भी माक्र्सवाद की तिर्यक समझ रखते हुए।

 




आमुख

खंड एक
 1. व्यक्ति 
 2. प्रतिपादन शैली 
 3. कोसंबी किसके लिए लिख रहे थे 
 4. क्या कोसंबी नस्लवादी थे ? 
 5. भारतीय इतिहासलेखन की समस्या 
 6. मौलिक उद्भावनाएँ 
 7. समन्वित पद्धतियाँ 

खंड दो
 8. ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद 
 9. भारतीय समाजरचना 
 10. वर्ण और वर्ग 
 11. दासता और शूद्रत्व 
 12. एशियाई उत्पादन पद्धति और प्राच्य निरंकुशता 

खंड तीन
 13. कोसंबी और सभ्यता.विमर्श 
 14. आर्यों की छवि और आर्यों का आक्रमण 
 15. आर्य भाष्षा और संस्कृति का प्रसार 
 16. ऋग्वेदिक सभ्यता 
 17. हड़प्पा सभ्यता 
 18. गंगा घाटी में आर्य 
 19. बुद्ध और उनका धर्म 

परिशिष्ष्ट 
 1. कर्ण की ऐतिहासिकता 
 2. महिष्षासुरमर्दिनी 
 3. ऋग्वेद का सबसे पुराना मंडल 

संदर्भ ग्रंथ व निबंध 
अनुक्रमणिका
 


भगवान सिह ने तुलनात्मक भाषा विज्ञान, वैदिक अध्ययन और प्राचीन भारतीय इतिहास के क्षेत्र में पुरानी स्थापनाओं को बदलते हुए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके कार्यों में प्रमुख हैंः स्थान नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन (1973)_ आर्यद्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता (1973)_ हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (1987)_ ज्ीम टमकपब भ्ंतंचचंदे (1995)_ भारतः तब से अब तक (1996)_ भारतीय सभ्यता की निर्मिति (2004)_ भारतीय परंपरा की खोज (2011)_ प्राचीन भारत के इतिहासकार (2011)_ भाषा और इतिहास (प्रकाश्य) और  ट्टग्वेद की परंपरा (धारावाहिक प्रकाशन, नयाज्ञानोदय में)। उनकी स्थापनों में जो नवीनता, प्रमाणों में जो विश्वसनीयता और विचारों में जो दृढ़ता पाई जाती है उसका रहस्य उनका क्षेत्रीय कार्य और पुरानी मान्यताओं का उनके ही समानान्तर सविमर्श पाठ रहा है ।
भारतीय इतिहासकारों और भारतविदों में कोसंबी पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने क्षेत्रीय काम के महत्व को भाषाविज्ञानियों के लिए रेखांकित किया था और साथ ही यह सुझाया था कि व्यर्थ और विकृत प्रतीत होने वाले कर्मकांडोें, रीतिविधानों, लोक विश्वासों, पौराणिक विवरणों में प्राचीनतम चरणों की ऐतिहासिक सचाइयाँ प्रतिबिबित पाई जा सकती हैं। कोसंबी को पढ़ते समय इसी तथ्य ने भगवान सिह को सबसे अधिक प्रेरित किया और इसलिए ही उन्होंने कोसंबी पर लिखने का भी मन बनाया। गहराई में उतरने पर पाया कि कोसंबी अपनी अपेक्षाओं से बहुत पीछे और कई बार उलट सिद्ध होते हैं। ऐसा क्यों हुआ, इस तलाश का ही परिणाम है यह पुस्तक। कोसंबी का नाम दुहराने वालों की कमी नहीं, उन्हें समझने का पहला प्रयत्न भगवान सिह ने किया। वह कोसंबी के शिष्य हैं परन्तु एैसे शिष्य जैसे ग्रीक परंपरा में ही पाए जाते थे।

No review available. Add your review. You could be the first one. Please Login

write a review (कोसंबीः...) Please Login!

  • Recent View Products
  • No books...
  • © Copyright 2016 by Aryan Books International. All Rights Reserved.

    • Privacy Policy
    • Discliamer
    • Terms & Conditions
    • Return Policy
    •     Designed and Developed by Dextrous Info Solutions Pvt. Ltd.